जानिए किसने किया स्टेथेस्कोप का आविष्कार।....
स्टेथॉस्कोप (Stethoscope) या वक्षस्थल-परीक्षक-यंत्र रोगी के रक्तसंचार की दशा का परीक्षण करने का उपकरण है।
मेडिकल दुनिया में सबसे अहम आविष्कार स्टेथेस्कोप ही था। जिसका आज 200 साल बाद भी मरीज के शरीर पर स्टेथेस्कोप लगाकर धड़कन सुनने के लिए डॉक्टर इस्तेमाल कर रहे हैं। जानिए किसने किया स्टेथेस्कोप का आविष्कार।
1816 में शर्मीले स्वभाव के लाइनेक ने स्टेथस्कोप का आविष्कार किया। इस आविष्कार के पीछे भी एक दिलचस्प वाकया है। वह हार्ट समस्या से जूझ रही एक महिला की जांच कर रहे थे। इस तरह की जांच के वक्त डॉक्टर सामान्य रूप से मरीज के धडक़नों को सुनते हैं। एक हाथ मशीन के साथ सीने पर होता है और कान में उसका वायर लगा रहता है लेकिन शर्मीले स्वभाव लाइनेक ने सोचा कि यह ठीक नहीं है।
वह भी तब जब महिला काफी वजन वाली थी। उन्होंने एक ट्यूब में पेपर को रोल किया और फिर उससे महिला के सीने को दबाया। इससे उन्होंने महिला की धडक़नों को सुन लिया। कुछ लोगों का कहना है कि उन्होंने यह प्रेरणा बांसुरी से ली थी। वह बांसुरी भी बजाते थे। इस तरह स्टेथस्कोप आविष्कार होना बताया जाता है।
यंत्र की खूबियां
आजकल प्राय: सभी चिकित्सक द्विकर्णीय यंत्र को ही उपयोग में लाते हैं। इसके दो भाग होते हैं, एक वक्षखंड जो घंटी या प्राचीर प्रकार का होता है तथा दूसरा कर्णखंड। ये दोनों रबर की नलिकाओं द्वारा जुड़े रहते हैं। हृदय, फेफड़े, आँत, नाडय़िाँ और वाहनियाँ आदि जब रोग से ग्रस्त हो जाती हैं तब चिकित्सक इसी यंत्र द्वारा उनसे निकली ध्वनि को सुनकर जानता है कि ध्वनि नियमित है या अनियमित। अनियमित ध्वनि रोग का संकेत करती है। इस यंत्र से ध्वनि तेज पड़ती है। रोगपरीक्षण में एक अच्छे वक्षस्थल परीक्षक यंत्र का होना अति आवश्यक है।
कौन थे रेने थियेफल हाइसिन लाइनेक??
फ़्रांस में लाइनेक का जन्म 1781 में हुआ था। मेडिसन की स्टडी उन्होंने अपने फिजिशन अंकल के अंडर फ्रांस के नॉन्ट शहर में की। फ्रांसीसी क्रांति में इन्हें मेडिकल सैनिक के तौर पर जाना जाता था। वह काफी सम्मानित प्रतिभाशाली स्टूडेंट थे। इन्होंने 1801 में पैरिस में पढ़ाई शुरू की और फ्रांसीसी राजशाही के नेके हॉस्पिटल में काम भी शुरू कर दिया।
फ्रांस के चिकित्सक रेते लाइनेक ने 1816 ई. में उर-परीक्षण के लिए एक यंत्र की खोज की, जिसके आधार पर प्रचलित वक्षस्थल परीक्षक यंत्र का निर्माण हुआ है। आजकल प्राय: सभी चिकित्सक द्विकर्णीय यंत्र को ही उपयोग में लाते हैं। इसके दो भाग होते हैं, एक वक्षखंड जो घंटी या प्राचीर प्रकार का होता है तथा दूसरा कर्णखंड। ये दोनों रबर की नलिकाओं द्वारा जुड़े रहते हैं। हृदय, फेफड़े, आँत, नाड़ियाँ और वाहनियाँ आदि जब रोग से ग्रस्त हो जाती हैं तब चिकित्सक इसी यंत्र द्वारा उनसे निकली ध्वनि को सुनकर जानता है कि ध्वनि नियमित है या अनियमित। अनियमित ध्वनि रोग का संकेत करती है। इस यंत्र से ध्वनि तेज पड़ती है। रोगपरीक्षण में एक अच्छे वक्षस्थल परीक्षक यंत्र का होना अति आवश्यक है।
डॉक्टरों की पहचान बन चुके स्टेथोस्कोप के दिन लदने वाले हैं। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने एक ऐसा उपकरण विकसित करने का दावा किया है, जिससे दिल की धड़कनों को न केवल स्मार्टफोन पर साफ-साफ सुना जा सकेगा बल्कि उसमें आने वाले उतार-चढ़ाव को स्क्रीन पर देखा भी जा सकेगा। र्टबड्स नाम के इस उपकरण को ऑरलेंडो हेल्थ के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डेविड बेलो ने ईजाद किया है। स्टेथोस्कोप से धड़कनों के अलावा शरीर के महत्वपूर्ण अंगों की ध्वनि को सुना जाता है। मोबाइल एप पर काम करने वाला प्लास्टिक निर्मित हार्टबड्स स्टेथोस्कोप के ऊपरी हिस्से के आकार का पोर्टेबल उपकरण है। इसे स्मार्टफोन से कनेक्ट किया जा सकता है। हार्टबड्स एप को एक्टिवेट करने पर इस उपकरण से धड़कन की आवाज को मोबाइल फोन से सुना जा सकता है। लेकिन इस्तेमाल करते वक्त डिवाइस को हाथ में रखना जरूरी है। इसके अलावा स्मार्टफोन के स्क्रीन पर रिदमिक ब्लिप की तस्वीरें भी दिखने लगती हैं जो उपकरण से आने वाली आवाज के साथ परिवर्तित होती रहती हैं। बेलो के मुताबिक नए उपकरण से स्टेथोस्कोप की तुलना में आवाज को बेहतर और स्पष्ट तरीके से सुना जा सकता है। इससे धड़कनों या शरीर के अन्य हिस्सों के आवाज को रिकॉर्ड किया जा सकता है और उसे मरीज को सुनाया जा सकता है। फिलहाल स्टेथोस्कोप लगाने वाले ही ध्वनि सुन सकता है। पचास मरीजों पर इसका सफल परीक्षण भी किया जा चुका है।
डॉ. लाइनक ने एक बार दो बच्चों को बांस के लंबे पाइप के सहारे एक दूसरे से बातचीत का खेल खेलते देखा। लड़की बहुत धीमी आवाज में जो फुसफुसा रही थी, उसे दूर बैठा उसका भाई बांस के पाइप के सहारे साफ सुन पा रहा था। यहीं से डॉ. रेने लाइक के दिमाग में स्टेथेस्कोप बनाने का आइडिया आया।
कैसे बना पहला उपकरण
लाइनक ने अपने क्लीनिक में पहुंचकर कागज के पन्नों की मदद से एक लंबा पाइप बनाया। इस पाइप का एक सिरा रोगी के सीने पर लगाकर दूसरा सिरा अपने कान में लगाया तो उन्हें उसके दिल की धड़कन ज्यादा स्पष्ट तरीके से सुनाई पड़ रही थी। लाइनक ने इसी तरीके का इस्तेमाल करके उसके फेफड़ों की भी आवाज सुनी। लाइनक ने इसी तरीके का इस्तेमाल करके प्रारंभिक स्टेथेस्कोप का निर्माण किया।गर्दन पर स्टेथोस्कोप रखते ही पता चलती है कैरोटिड आर्टरी की बीमारी --
कैरोटिड आर्टरी में मामूली-सा ब्लॉकेज होने पर यह ठीक हो सकता है, लेकिन गंभीर होने पर सर्जरी ही करनी होती है। हालांकि, डॉक्टर जब स्टेथोस्कोप से गर्दन की जांच करता है, तभी इस बीमारी का पता चल जाता है कि आखिर कैरोटिड आर्टरी क्या है और किस हद तक यह बढ़ चुका है। इसमें जांच का कोई खर्च भी नहीं आता। इसे गरीबों का डॉपलर टेस्ट भी कहा जाता है। आमतौर पर अब अधिकांश डॉक्टर स्टेथोस्कोप से जांच नहीं करते हैं, वरना बड़ी आसानी से और समय रहते इसका पता चल सकता है। आइए जानते हैं क्या है कैरोटिड आर्टरी बीमारी-
कैरोटिड आर्टरी एथ्रोस्केलेरोसिस
एक गंभीर बीमारी है, जो अक्सर ब्रेन स्ट्रोक का कारण बनती है। स्ट्रोक या ब्रेन अटैक तब होता है, जब ब्रेन में ब्लड का सर्कुलेशन ठीक तरह से नहीं होता या पूरी तरह से बंद हो जाता है। जिससे ब्रेन सेल्स डेड होने लगते हैं। और इसकी वजह से शरीर के जिस भी हिस्से को ब्रेन सेल्स कंट्रोल करती हैं, वो प्रभावित होने लगते हैं। स्ट्रोक, ब्रेन डैमेज, लकवा मौत का कारण भी बन सकता है। एथ्रोस्केलेरोसिस ज्यादातर आर्टरीज को बचपन से ही प्रभावित करती है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, धमनियों की दीवारों पर ब्लड का प्रेशर भी बढ़ता जाता है। जिससे आर्टरी की दीवारों को नुकसान पहुंचने लगता है। जो ज्यादातर नेचुरल रिपेयर मैकेनिज्म से सुधर भी जाता है। लेकिन जिन व्यक्तियों में फैट की मात्रा और ब्लड प्रेशर अधिक होता या बहुत ज्यादा स्मोकिंग करते हैं उनमें आर्टरीज का रास्ता धीरे-धीरे ब्लॉक होने लगता है। जो स्ट्रोक का कारण बनती है। एथ्रोस्केलेरोसिस को बढ़ावा देने वाले कारकों में हाई बीपी, धूम्रपान, डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल हाई होना, मोटापा, मानसिक तनाव आदि शामिल है। इसीलिए इसे लाइफस्टाइल डिजीज भी कहा जाता है।
एथ्रोस्केलेरोसिस किसी भी आर्टरी को प्रभावित कर सकता है। जब भी कोरोनरी (दिल) की आर्टरी में गंदगी (प्लाक) जमा होगी, दिल का दौरा पड़ने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी। जब यही गंदगी कैरोटिड आर्टरी में जमा होने लगेगी, तो स्ट्रोक का खतरा बना रहता है। कैरोटिड आर्टरी से संबंधित बीमारी में किसी तरह का कोई संकेत या लक्षण तब तक नहीं पता चलता, जब तक ये 70 फीसदी तक सिकुड़ न जाए या पूरी तरह से बंद न हो जाए। कुछ लोगों में इस बीमारी का पहला संकेत स्ट्रोक होता है।