भारत के महान सितार वादक पंडित रविशंकर....
रवि शंकर विश्व में भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्कृष्टता के सबसे बड़े उदघोषक थे। एक सितार वादक के रूप में उन्होंने ख्याति अर्जित की। रवि शंकर और सितार मानो एक-दूसरे के लिए ही बने हों। वह इस सदी के सबसे महान संगीतज्ञों में गिने जाते थे। रविशंकर को विदेशों में बहुत अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई। विदेशों में वे अत्यन्त लोकप्रिय एवं सफल रहे। रविशंकर के संगीत में एक प्रकार की आध्यात्मिक शान्ति प्राप्त होती है।
रविशंकर संगीत की परम्परागत भारतीय शैली के अनुयायी थे। उनकी अंगुलियाँ जब भी सितार पर गतिशील होती थी, सारा वातावरण झंकृत हो उठता था। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय संगीत को ससम्मान प्रतिष्ठित करने में उनका उल्लेखनीय योगदान है। उन्होंने कई नई-पुरानी संगीत रचनाओं को भी अपनी विशिष्ट शैली से सशक्त अभिव्यक्ति पदान की।
पंडित रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल 1920 को बनारस में हुआ था. गौर करें उस दौर में भारत ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था. ये एक बंगाली परिवार से संबंध रखते थे. इनके पिता का नाम श्याम शंकर था, जो पेशे से एक वकील थे. वकालत की शिक्षा करने से पूर्व इनके पिता का विवाह गाज़ीपुर की हीमांगनी देवी से हुआ. हीमांगनी देवी गाज़ीपुर के एक जमींदार परिवार से संपर्क रखती थी. श्याम शंकर विवाह के बाद अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी करने के लिए इंग्लैंड चले गये. वहां जाकर उन्होंने दूसरी शादी कर ली. जब वो वापस आये तो रविशंकर आठ साल के हो चुके थे. इसके बाद 10 साल की उम्र में रविशंकर अपने भाई उदय शंकर के नृत्य ग्रुप में शामिल होकर देश-विदेशों का दौरा करने लगे और यहीं से शुरू हुआ सीख का सफ़र. एक ऐसा सफ़र जो ताउम्र किसी मोड़ पर और लंबा होता गया.
इनकी आरंभिक संगीत शिक्षा घर पर ही हुई। उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार और गुरु उस्ताद अलाउद्दीन ख़ां को इन्होंने अपना गुरु बनाया। यहीं से आपकी संगीत यात्रा विधिवत आरंभ हुई। अलाउद्दीन ख़ां जैसे अनुभवी गुरु की आँखों ने आप के भीतर छिपे संगीत प्रेम को पहचान लिया था। उन्होंने आपको विधिवत अपना शिष्य बनाया। वह लंबे समय तक तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ, किशन महाराज और सरोद वादक उस्ताद अली अकबर ख़ान के साथ जुड़े रहे। अठारह वर्ष की उम्र में उन्होंने नृत्य छोड़कर सितार सीखना शुरू किया।
रविशंकर अपने भाई उदय शंकर के साथ विदेशों में काम कर रहे थे. इसी दौरान उन्होंने 1938 से 1944 तक सितार का अध्ययन करने की शुरुआत की. भारतीय शास्त्रीय संगीत के उनके उस्ताद अल्लाऊद्दीन खां साहब थे. बाद में रविशंकर ने उनकी बेटी अन्नापूर्णा से ही विवाह कर लिया. शादी के बाद वो स्वतंत्र रुप से काम करने लगे.
इनके करियर के शुरुआती दिनों अपनी पहचान स्वतंत्र रूप से स्थापित करना मुश्किल हो गया था. वो फ़िल्मों में संगीत देने लेगे. मसलन सत्यजीत रे की कुछेक फ़िल्में और गुलज़ार की एक फ़िल्म 'मीरा' में भी उन्होंने अपना संगीत दिया था. 1949 से लेकर 1956 तक ऑल इंडिया रेडियो में बतौर संगीत निर्देशक काम किया.
वो भारत में काम कर रहे थे लेकिन कई बरसों से सीने में कोई धुन अटकी हुई थी. उस अटकी हुई धुन को निकालने के लिए अध्ययन की ज़रूरत थी. 1960 के बाद उन्होंने यूरोप का दौरा किया. यहां उन्होने जॉर्ज हेरिशन जैसे प्रसिद्ध और संजीदा संगीतकार के साथ काम करना शुरू किया. उनकी खास पहचान बनने लगी. भारतीय शास्त्रीय संगीत का जलवा पश्चिम देशों में भी लोगों के सर चढ़ने लगा. लोगों में हुए इस संगीत के जादू का मुख्य कारण ये जादूगर ही था. जो अपने सितार से सबको मोह लेता था.
रवि शंकर ने वर्ष 1971 में 'बांग्लादेश मुक्ति संग्राम' के समय वहां से भारत आ गए लाखों शरणार्थियों की मदद के लिए कार्यक्रम करके धन एकत्र किया था। हिन्दुस्तानी संगीत को रविशंकर ने रागों के मामले में भी बड़ा समृद्ध बनाया है। यों तो उन्होंने परमेश्वरी, कामेश्वरी, गंगेश्वरी, जोगेश्वरी, वैरागी तोड़ी, कौशिकतोड़ी, मोहनकौंस, रसिया, मनमंजरी, पंचम आदि अनेक नये राग बनाए हैं, पर वैरागी और नटभैरव रागों का उनका सृजन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो, जब रेडियो पर कोई न कोई कलाकार इनके बनाए इन दो रागों का न गाता-बजाता हो।
प्रारम्भ में पंडित जी ने अमेरिका के प्रसिद्ध वायलिन वादक येहुदी मेन्युहिन के साथ जुगलबन्दियों में भी विश्व-भर का दौरा किया। तबला के महान् उस्ताद अल्ला रक्खा भी पंडित जी के साथ जुगलबन्दी कर चुके हैं। वास्तव में इस प्रकार की जुगलबन्दियों में ही उन्होंने भारतीय वाद्य संगीत को एक नया आयाम दिया। पंडित जी ने अपनी लम्बी संगीत-यात्रा में अपने और अपने सम्बन्ध में कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखी हैं। ‘माई म्यूजिक माई लाइफ’ के अतिरिक्त उनकी ‘रागमाला’ नामक पुस्तक विदेश के एक सुप्रसिद्ध प्रकाशक ने प्रकाशित की है।
पंडित रवि शंकर को विभिन्न विश्वविद्यालयों से डाक्टरेट की 14 मानद उपाधियां मिल चुकी हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत संगीतज्ञों की एक संस्था के सदस्य रहे। रवि शंकर को तीन ग्रेमी पुरस्कार मिले हैं। रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, पद्म भूषण, पद्म विभूषण तथा भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न भी मिल चुका है। रवि शंकर को भारतीय संगीत ख़ासकर सितार वादन को पश्चिमी दुनिया के देशों तक पहुंचाने का श्रेय भी दिया जाता है। 1968 में उनकी 'यहूदी मेनुहिन' के साथ उनकी एल्बम 'ईस्ट मीट्स वेस्ट' को पहला ग्रैमी पुरस्कार मिला था। फिर 1972 में 'जॉर्ज हैरिसन' के साथ उनके 'कॉनसर्ट फॉर बांग्लादेश' को ग्रैमी दिया गया। संगीत जगत का ऑस्कर माने जाने वाले ग्रैमी पुरस्कार की विश्व संगीत श्रेणी में पंडित रविशंकर के साथ स्पर्धा में ब्रिटेन के प्रख्यात संगीतकार जॉन मेक्लॉलिन और ब्राज़ील के गिलबर्टो गिल और मिल्टन नेसिमेल्टो भी शामिल थे। राज्यसभा मानद सदस्य 1986 में राज्यसभा के मानद सदस्य चुनकर भी उन्हें सम्मानित किया गया। 1986 से 1992 तक राज्य सभा के सदस्य रहे। सितार वादक पंडित रविशंकर भारत के उन गिने चुने संगीतज्ञों में से थे जो पश्चिम में भी लोकप्रिय रहे। रवि शंकर अनेक दशकों से अपनी प्रतिभा दर्शाते रहे। 1982 के दिल्ली एशियाड (एशियाई खेल समारोह) के 'स्वागत गीत' को उन्होंने कई स्वर प्रदान किये थे। उनको देश-विदेश में कई बार सम्मानित किया जा चुका है।
उम्र के उस दौर में जहां लोग बिस्तर पकड़ लेते हैं, वहीं पंडित रविशंकर के हाथों में सितार देखने को मिलता था, जैसे उम्र के तज़ुर्बों को दिखाने और दर्द को छुपाने का एकमात्र सहारा इनका सितार ही हो. एक साक्षात्कार में इन्होंने कहा था कि, “मेरा दिल अभी जवान है, उम्र चाहे जो भी हो”. यहां हम उनके अंतिम समय का एक वीडियो दिखा रहे हैं, जिसमें उनके चेहरे पर संतोष नज़र आ रहा है. मानो जीवन से कोई शिकायत न हो. सितार से निकला ये सितारा जीवन में पछतावों के रास्ते से बहुत आगे निकल आया था.
पंडित रविशंकर का 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। अमेरिका में सैन डिएगो के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। पंडित रविशंकर को सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद ला जोल्ला के स्किप्स मेमोरियल अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्होंने स्थानीय समयानुसार मंगलवार 11 दिसम्बर, 2012 को शाम 4.30 बजे अंतिम सांस ली। मशहूर सितार वादक पंडित रविशंकर के अमेरिका के एक अस्पताल में निधन पर शोक जताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को कहा कि वह राष्ट्रीय सम्पदा थे। माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से लिखे संदेश में कहा गया है, 'पंडित रविशंकर के निधन से एक युग का अंत हो गया है, मेरे साथ-साथ पूरा देश उनकी प्रतिभा, कला तथा विन्रमता को श्रद्धांजलि देता है।'
आज उनकी रवायत को उनकी बेटी अनुष्का शंकर आगे बढ़ा रही हैं. आज सितार वादक पंडित रविशंकर हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका ज़िक्र ही उनके होने का प्रमाण है.