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दुनिया के बेशकीमती कोहिनूर हीरे की दिलचस्प कहानी ....

प्राचीन भारत की शान कोहिनूर हीरे की खोज वर्तमान भारत के आंध्रप्रदेश राज्य के गुंटूर जिले में स्तिथ गोलकुंडा की खदानों में हुई थी जहां से दरियाई नूर और नूर-उन-ऐन जैसे विशव प्रसिद्द हीरे भी निकले थे। पर यह हीरा खदान से कब बाहर आया इसकी कोई पुख्ता जानकारी इतिहास में नहीं है।

 

कोहिनूर का अर्थ होता है रोशनी का पहाड़ लेकिन इस हीरे की चमक से कई सल्तनत के राजाओ का सूर्ये अस्त हो गया। ऐसी मान्यता है की यह हीरा अभिशप्त है और यह मान्यता अब से नहीं 13 वि शताब्दी से है।  इस हीरे का प्रथम प्रमाणिक वर्णन बाबरनामा में मिलता है जिसके अनुसार 1294 के आस-पास यह हीरा ग्वालियर के किसी राजा के पास था हालांकि तब इसका नाम कोहिनूर नहीं था। पर इस हीरे को पहचान 1306 में मिली जब इसको पहनने वाले एक शख्स ने लिखा की जो भी इंसान इस हीरे को पहनेगा वो इस संसार पर राज करेगा पर इसी के साथ उसका दुर्भाग्य शुरू हो जाएगा। हालांकि तब उसकी बात को उसका वहम कह कर खारिज कर दिया गया पर यदि हम तब से लेकर अब तक का इतिहास देखे तो कह सकते है की यह बात काफी हद तक सही है।

 

कई साम्राज्यों ने इस हीरे को अपने पास रखा लेकिन जिसने भी रखा वह कभी भी खुशहाल नहीं रह पाया।  14 वि शताब्दी की शुरुआत में यह हीरा काकतीय वंश के पास आया और इसी के साथ 1083 ई. से शासन कर रहे काकतीय वंश के बुरे दिन शुरू हो गए और 1323 में तुगलक शाह प्रथम से लड़ाई में हार के साथ काकतीय वंश समाप्त हो गया।

काकतीय साम्राज्य के पतन के पश्चात यह हीरा 1325 से 1351 ई. तक मोहम्मद बिन तुगलक के पास रहा और 16वीं शताब्दी के मध्य तक यह विभिन्न मुगल सल्तनत के पास रहा और सभी का अंत इतना बुरा हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.

 

शाहजहां ने इस कोहिनूर हीरे को अपने मयूर सिंहासन में जड़वाया लेकिन उनका आलीशान और बहुचर्चित शासन उनके बेटे औरंगजेब के हाथ चला गया। उनकी पसंदीदा पत्नी मुमताज का इंतकाल हो गया और उनके बेटे ने उन्हें उनके अपने महल में ही नजरबंद कर दिया।

1739 में फारसी शासक नादिर शाह भारत आया और उसने मुगल सल्तनत पर आक्रमण कर दिया। इस तरह मुगल सल्तनत का पतन हो गया और नादिर शाह  अपने साथ तख्ते ताउस और कोहिनूर हीरों को पर्शिया ले गया। उसने इस हीरे का नाम कोहिनूर रखा। 1747 ई. में नादिरशाह की हत्या हो गयी और कोहिनूर हीरा अफ़गानिस्तान शांहशाह अहमद शाह दुर्रानी के पास पहुंच गया। और उनकी मौत के बाद उनके वंशज शाह शुजा दुर्रानी के पास पहुंचा। पर कुछ समय बाद  मो. शाह ने शाह शुजा को अपदस्त कर दिया। 1813  ई.  में, अफ़गानिस्तान के अपदस्त शांहशाह शाह शूजा कोहीनूर हीरे के साथ भाग कर लाहौर पहुंचा। उसने  कोहिनूर हीरे को पंजाब के राजा रंजीत सिंह को दिया एवं इसके एवज में राजा रंजीत सिंह ने,  शाह शूजा को अफ़गानिस्तान का राज-सिंहासन वापस दिलवाया। इस प्रकार कोहिनूर हीरा वापस भारत आया।

लेकिन कहानी यही खत्म नहीं होती है कोहिनूर हीरा आने के कुछ सालो बाद महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो जाती है और अंग्रेज सिख साम्राज्य को अपने अधीन कर लेते है। इसी के साथ यह हीरा ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा हो जाता है। कोहिनूर हीरे को ब्रिटेन ले जाकर महारानी विक्टोरिया को सौप दिया जाता है तथा उसके शापित होने की बात बताई जाती है। महारानी के बात समझ में आती है और वो हीरे को ताज में जड़वा के 1852 में स्वयं पहनती है तथा यह वसीयत करती है की इस ताज को सदैव महिला ही पहनेगी। यदि कोई पुरुष ब्रिटेन का राजा बनता है तो यह ताज उसकी जगह उसकी पत्नी पहनेगी।

पर कई इतिहासकारों का मानना है की महिला के द्वारा धारण करने के बावजूद भी इसका असर ख़त्म नहीं हुआ और ब्रिटेन के साम्राज्य के अंत के लिए भी यही ज़िम्मेदार है। ब्रिटेन 1850 तक आधे विशव पर राज कर रहा था पर इसके बाद उसके अधीनस्थ देश एक एक करके स्वतंत्र हो गए।

 

कहा जाता है की खदान से निकला हीरा 793 कैरेट का था।  अलबत्ता 1852 से पहले तक यह 186 कैरेट का था। पर जब यह ब्रिटेन पहुंचा तो महरी को यह पसंद नहीं आया इसलिए इसकी दुबारा कटिंग करवाई गई जिसके बाद यह 105.6 कैरेट का रह गया। कोहिनूर की वर्तमान कीमत लगभग 150 हजार करोड़ रुपए है। 105 कैरेट (लगभग 21.600 ग्राम) का यह हीरा महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के ताज का हिस्सा है। 

 

इस वक्त कोहिनूर हीरा ब्रिटेन के राजपरिवार के पास है। लंदन टॉवर, ब्रिटेन की राजधानी लंदन के केंद्र में टेम्स नदी के किनारे बना एक भव्य किला है जिसे सन् 1078 में विलियम द कॉकरर ने बनवाया था। राजपरिवार इस किले में नहीं रहता है और शाही जवाहरात इसमें सुरक्षित हैं जिनमें कोहिनूर हीरा भी शामिल है।

ब्रिटेन के राजपरिवार के हाल भी किसी से छुपे नहीं हैं। अकाल मौत, कत्ल और बदनामी के कई दौर सहन करने के बाद भी आज यह हीरा इस परिवार के पास ही है। 

 

 

कोहिनूर हीरा अपने पुरे इतिहास में अब तक एक बार भी नहीं बिका है यह या तो एक राजा द्वारा दूसरे राजा से जीता गया या फिर इनाम में दिया गया। इसलिए इसकी कीमत कभी नहीं लग पाई।  पर इसकी कीमत क्या हो सकती है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है की आज से 60 साल पूर्व हांगकांग में एक ग्राफ पिंक हीरा 46 मिलियन डॉलर में  बिका था जो की मात्र 24.78 कैरेट का था।  इस हिसाब से कोहिनूर की वर्तमान कीमत कई बिलियन डॉलर होगी।

 

भारत अकेला देश नहीं है जो इस हीरे पर दावा जता रहा है। अपने लंबे सफर के बाद यह हीरा कई राजाओं के हाथों से गुजरा है। साल 1976 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री जिम कैलेघन से इसे उनके देश को लौटाने का अनुरोध किया था। इसके अलावा अफगानिस्तान के तालिबान शासक और ईरान ने भी इस पर अपना दावा पेश किया है। लेकिन ब्रिटेन ने उनके अनुरोध को ठुकरा दिया था।


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