अंग्रेजी साहित्य की महान प्रतिभा - विलियम शेक्सपीयर....
शेक्सपियर अंग्रेजी साहित्य में अपने नाटकों के लिए उतने ही विश्व प्रसिद्ध रहे हैं, जितने संस्कृत साहित्य में कालिदास।
विलियम शेक्सपीयर अंग्रेजी के कवि, नाटककार तथा अभिनेता थे। उनके नाटकों का लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हुआ है | शेक्सपियर में अत्यंत उच्च कोटि की सर्जनात्मक प्रतिभा थी और साथ ही उन्हें कला के नियमों का सहज ज्ञान भी था। प्रकृति से उन्हे मनो वरदान मिला था अत: उन्होंने जो कुछ छू दिया वह सोना हो गया। उनकी रचनाएँ न केवल अंग्रेज जाति के लिए गौरव की वस्तु हैं वरन् विश्ववाङ्मय की भी अमर विभूति हैं। शेक्सपियर की कल्पना जितनी प्रखर थी उतना ही गंभीर उनके जीवन का अनुभव भी था। अत: जहाँ एक ओर उनके नाटकों तथा उनकी कविताओं से आनंद की उपलब्धि होती है वहीं दूसरी ओर उनकी रचनाओं से हमको गंभीर जीवनदर्शन भी प्राप्त होता है। विश्वसाहित्य के इतिहास में शेक्सपियर के समकक्ष रखे जानेवाले विरले ही कवि मिलते हैं।
विलियम शेक्सपियर 26 अप्रेल, 1564 को स्ट्रेटफोर्ड-आन-ऐवोन, वार्विकशायर, इंग्लैंड में दीक्षित हुए थे। वह जॉन शेक्सपियर और मैरी अर्डेन की संतान थे। जॉन दंपति के चार पुत्र और चार पुत्रीयां थी। जॉन शेक्सपियर एक स्थानीय व्यापारी थे, साथ ही एल्डरमैन के तौर पर नगर निगम में भी शामिल थे। परिवार भरापूरा और खुशहाल था। लेकिन बाद के वर्षों में उनकी किस्मत में गिरावट से निश्चित रूप से विलियम पर असर पड़ा।
28 नवंबर, 1582 को विलियम शेक्सपियर का विवाह ऐनी हैथवे से कैंटरबरी प्रांत, वॉर्सेस्टर में हुआ। हैथवे स्ट्रैटफ़ोर्ड के पश्चिम में मील भर के फासले पर स्थित एक छोटे से गांव शॉटेरी से थी। विवाह के समय विलियम 18 साल के और ऐनी 26 साल की थी। ऐनी शीघ्र ही गर्भवती हो गई। उनका पहला बच्चा, सुजाना नाम की एक बेटी, 26 मई 1583 को पैदा हुई। दो वर्ष बाद, 2 फरवरी, 1585 को जुड़वां हैमनेट और जूडिथ पैदा हुए। हैमनेट की बाद में 11 साल की उम्र में ही अज्ञात कारणों से मौत हो गई थी।
1612 में उन्होंने लिखना छोड़ दिया और अपने जन्मस्थान को लौट आये। 23 अप्रेल, 1616 को 52 वर्ष की उम्र में उनका स्वर्गवास हुआ।
शेक्सपियर को आज सारी दुनिया अंग्रेजी साहित्य के पितामह के रूप में पहचानती है। बावजूद उनका निजी जीवन एक रहस्य ही रहा है। उनके जीवन के बारे में बहुत काम जानकारी उपलब्ध है। इतिहासकारों ने उनके जीवन से जुडी कुछ बातों को उनकी कृतियों एवं अदालतों व चर्च रिकॉर्ड के सरकारी दस्तावेजों से पाया है। शेक्सपियर की जन्म तिथि 26 अप्रेल व 23 अप्रेल के बीच विवादित रही है क्योंकि उस काल में चर्च जन्म-मृत्यु की तिथियों का लेखा-जोखा नहीं करता था बल्कि दस्तावेजों में दीक्षा और दफ़न संस्कार बस दर्ज होते थे। हालांकि चर्च के रिकॉर्ड से संकेत मिलता है, विलियम शेक्सपियर 26 अप्रैल, 1564 को स्ट्रेटफोर्ड-आन-ऐवोन के होली ट्रिनिटी चर्च में दीक्षित हुए थे। इस रिकॉर्ड के आधार पर, वह 23 अप्रैल, 1564 को या इसके निकट पैदा हुए थे, ऐसा माना जाता है। इस तिथि को विद्वानों ने विलियम शेक्सपियर के जन्मदिन के रूप में स्वीकार किया है।
शेक्सपियर के कुछ प्रसिद्द नाटक है - जूलियस सीज़र, ऑथेलो, मैकबेथ, हैमलेट, सम्राट लियर, रोमियो जूलियट, वेनिस का सौदागर, बारहवीं रात, तिल का ताड़, तूफान।
शेक्सपियर के सुखांत नाटकों की अपनी निजी विशेषताएँ हैं। यद्यपि 'दी कामेडी आव एरर्स' में प्लाटस का अनुसरण किया गया है तथापि अन्य सुखांत नाटक प्राचीन क्लासिकी नाटकों से सर्वथा भिन्न हैं। इनका उद्देश्य प्रहसन द्वारा कुरूपताओं का मिटाना तथा त्रुटियों का सुधार करना नहीं वरन् रोचक कथा और चरित्रचित्रण द्वारा लोगों का मनोरंजन करना है। इस प्रकार के प्राय: सभी नाटकों का विषय प्रेम की ऐसी तीव्र अनुभूति है जो युवकों और युवतियों के मन में सहज आकर्षण के रूप में स्वत: उत्पन्न होती है। प्रेमी जनों के मार्ग में पहले तो बाधाएँ उत्पन्न होती हैं किंतु नाटक के अंत तक कठिनाइयाँ विनष्ट हो जाती हैं और उनका परिणाम संपन्न होता है। इन रचनाओं में जीवन की कवित्वपूर्ण एवं कल्पनाप्रवण अभिव्यक्ति हुई है और समस्त वातावरण आह्लाद से ओत-प्रोत है। शेक्सपियर का परिचय कतिपय उच्चवर्गीय परिवारों से हो गया था और उनमें जिस प्रकार का जीवन उन्होंने देखा उसी का प्रकाशन इन नाटकों में किया है।
दु:खांत नाटकों में मानव जीवन की गंभीर समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। इन नाटकों के अभिजात कुलोत्पन्न नायक कुछ समय तक सफलता और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने के उपरांत यातना और विनाश के शिकार बनते हैं। उनके दु:ख और मृत्यु के क्या कारण हैं, इस विषय पर शेक्सपियर का मत स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त हुआ है। नायक का दुर्भाग्य अंशत: प्रतिकूल नियति एवं परिस्थितियों से उद्भूत है, किंतु इससे कहीं बड़ा कारण उसकी चारित्रिक दुर्बलता में मिलता है। प्राचीन यूनानी दुखांत नाटकों में नायक केवल त्रुटिपूर्ण निर्णय अथवा त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण के कारण विनष्ट होता था परंतु, कदाचित् ईसाई धर्म और नैतिकवाद से प्रभावित होकर, शेक्सपियर ने अपने नाटकों में नायक के पतन की प्रधान जिम्मेदारी उसकी चारित्रिक दुर्बलता पर ही रखी है। हैमलेट, आथेलो, लियर और मैकबेथ - इन सभी के स्वभाव अथवा चरित्र में ऐसी कमी मिलती है जो उनके कष्ट एवं मृत्यु का कारण बनती है। इन दु:खांत नाटकों में दुहरा द्वंद्व परिलक्षित हुआ है, आंतरिक द्वंद्व एव बह्य द्वंद्व। आंतरिक द्वंद्व नायक के मन में, उसके विचारों और भावनाओं में उत्पन्न होता है और अपनी तीव्रता के कारण न केवल निर्णय कठिन बना देता है अपितु कुछ समय के लिए नायक का आसूल विचलित भी कर देता है। इस प्रकार के आंतरिक द्वंद्व के कारण नाटकों में मनोवैज्ञानिक सूक्ष्मता और रोचकता का आविर्भाव हुआ है। बाह्य द्वंद्व बाहरी शक्तियों की स्पर्धा और उनके संघर्ष से उत्पन्न होता है, जैसे दो विरोधी राजनीतिक दलों अथवा सेनाओं का पारस्परिक विरोध। शेक्सपियर के प्रमुख दु:खांत नाटकों में रक्तगत एवं भयावह दृश्यों की अवतारणा के कारण अत्यंत आतंकपूर्ण वातावरण निर्मित हुआ है। इसी भाँति हत्या और प्रतिशोध संबंधी दृश्यों के समावेश से भी अवसाद का पुट गहरा हो गया है। इन सभी विशेषताओं और उपकरणों को शेक्सपियर ने कतिपय पुराने नाटकों तथा सेनेका, किड्, मार्लो आदि नाटककारों से ग्रहण किया था और सामयिक लोकरुचि को ध्यान में रखकर ही उनका उपयोग अपने नाटकों में किया था। दु:खांत नाटकों की जिन विशेषताओं का उल्लेख हमने यहाँ किया है वे न केवल हैमलेट, आथेलो, किंग लियर, और मैकबेथ में मिलती हैं वरन् रोमियो ऐंड जुलिएट तथा इंग्लैंड और रोम के इतिहास पर आधृत दु:खांत नाटकों में भी आंशिक रूप में विद्यमान हैं।
शेक्सपियर ने जिन ऐतिहासिक नाटकों की रचना की उनमें कई रोमन इतिहास विषयक हैं। इन रोमन नाटकों के लेखन में शेक्सपियर ने इतिहास के तथ्यों को थोड़ा बहुत बदल दिया है और कतिपय स्थलों पर ऐसा प्रतीत होने लगता है कि जीवन का जो चित्र उपस्थित किया गया है वह प्राचीन रोम का नहीं अपितु ऐलिज़वेथ कालीन इंग्लैंड का है। इतना होने पर भी ये नाटक सदैव लोकप्रिय रहे हैं, विशेषकर जुलियस सीजर तथा एंटोनी ऐंड क्लिओपाट्रा। ऐंटोनी ऐड क्लिओपाट्रा कवित्वपूर्ण अंशों स भरा पड़ा है तथा क्लिओपाट्रा की चरित्रकल्पना अत्यंत प्रभावोत्पादक है। टाइमन ऑव एथेंस और पेरिकिल्स में यूनानी इतिहास की घटनाओं का निरूपण किया गया है। अंग्रेजी इतिहास पर आधारित नाटकों में कुछ तो ऐसे हैं जो केवल आंशिक रूप में शेक्सपियर द्वारा लिखे गए हैं किंतु हेनरी चतुर्थ के दोनों भाग और हेनरी पंचम पूर्ण रूपेण शेक्सपियर द्वारा प्रणीत हैं। इन तीनों नाटकों में कवि को महान् सफलता मिली है। इनमें शौर्य और सम्मानभावना का अत्यंत आकर्षक प्रतिपादन हुआ है और फाल्स्टाफ का चरित्र अत्यंत रोचक एवं स्पृहणीय हैं। रिचर्ड तृतीय और रिचर्ड द्वितीय में मार्लो का अनुकरण सफलतापूर्वक किया गया है। शेक्सपियर के पूर्व के अधिकांश अंग्रेजी ऐतिहासिक नाटकों में तथ्यों और घटनाओं का निर्जीव चित्रण रहता था तथा कोरी इतिवृत्तात्मकता के कारण वे नीरस होते थे। शेक्सपियर ने इस प्रकार के नाटकों को जीवंत रूप देकर चमत्कारपूर्ण बना दिया है।
अंतिम नाटकों में शेक्सपियर का परिपक्व जीवनदर्शन मिलता है। महाकवि को अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के अनुभव हुए थे जिनकी झलक उनी कृतियों में दिखाई पड़ती है। प्रणय विषयक सुखांत नाटकों में कल्पनाविलास है और कवि का मन ऐश्वर्य और यौवन की विलासिता में रमा है। दु:खांत नाटकों में ऐसे दु:खद अनुभवों को अभिव्यक्ति है जो जीवन को विषाक्त बना देते हैं। शेक्सपियर के कृतित्व की परिणति ऐसे नाटकों की रचना में हुई जिनमें उनकी सम्यक बुद्धि का प्रतिफलन हुआ है। कवि अब अपनी विवेकपूर्ण दृष्टि से देखता है कि जीवन में सुख और दु:ख दोनों सन्निविष्ट रहते हैं, अत: दानों ही क्षणिक हैं। जीवन में दु:ख दोनों सन्निविष्ट रहते हैं, अत: दोनों ही क्षणिक हैं। जीवन में दु:ख के बाद सुख आता है, अतएव विचार और व्यवहार में समत्व वांछनीय है। इन अंतिम नाटकों से यह निष्कर्ष निकलता है कि हिंसा और प्रतिशोध की अपेक्षा दया और क्षमा अधिक श्लाघनीय हैं। अपने गंभीर नैतिक संदेश के कारण इन नाटकों का विशेष महत्व है।
शेक्सपियर के नाटक स्वच्छंदतावादी हैं तथा प्राचीन यूनानी और लैटिन नाटकों की परंपरा से पृथक् हैं। अत: उनमें वस्तुविन्यास की शास्त्रीय विशेषताओं को ढूँढ़ना उचित नहीं है। केवल अपने अंतिम नाटक 'दी टेंपेस्ट' में उन्होंने तीनों अन्वितियों का निर्वाह किया है। प्राय: सभी अन्य नाटकों में केवल कार्यान्विति का ध्यान रखा गया है, समय और स्थान की दृष्टि से वे नितांत निबंध हैं। कथावस्तु में सदैव पर्याप्त विस्तार मिलता है और सामान्यत: उसमें कई कथाएँ अंतर्निहित रहती हैं। उदाहरणार्थ हम ए मिड समर नाइट्स ड्रीम, दी मर्चेंट आव वेनिस, ऐज़ यू लाइक इट अथवा किंग लियर को ले सकते हैं। इन सभी में अनेक कथाओं के मिश्रण द्वारा वस्तुनिर्माण संपन्न हुआ है। किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि शेक्सपियर के नाटकों की बनावट त्रुटिपूर्ण है। अंत:कथाओं का नाट्यवस्तु में सुंदर, कलापूर्ण रीति से गुंफन किया गया है तथा संपूर्ण कथानक से संकलित एकता का आभास मिलता है। शास्त्रीय अर्थ में अन्वितियों का अभाव होने पर भी इन स्वच्छंदतावादी नाटकों में भावानात्मक तथा कल्पनात्मक एकीकरण हुआ है।
पात्रकल्पना में शेक्सपियर को और भी अधिक सफलता मिली है। अपने नाटकों में उन्होंने अनेक आकर्षक पात्रों की सृष्टि की है जो अपने जीवंत रूप में हमारे सामने आते हैं। समय के साथ चरित्रनिरूपण की प्रक्रिया अधिकाधिक सूक्ष्म एवं कलात्मक होती गई। उदाहरण के लिए हम सुखांत नाटकों में समाविष्ट रोज़ालिन, पोर्सिया, वियार्ट्रस, रोज़ालिंड, वायला प्रभृति प्रगल्भा नारियों को ले सकते हैं जो अपनी प्रखर बुद्धि और वाक्चातुरी का परिचय निरंतर देती हैं। दूसरी कोटि की वे नारियाँ हैं जिनके अनुपम सौंदर्य और संकटपूर्ण अनुभवों के कारण मन में करुणा का उद्रेक होता है। ऐस नारियों में प्रमुख हैं जुलिएट, ओफिलिया, डेसडिमोना, कार्डिलिया, इमोजेन इत्यादि। दु:खांत नाटकों में चरित्रचित्रण का अत्यधिक महत्व है। उदाहरण के लिए हम हैमलेट को ले सकते हैं। नाटक की समस्त घटनाएँ नायक के चरित्र पर केंद्रित हैं और उसी के व्यक्तित्व के प्रभाव से कथा का विकास होता है। अंशत: यही बात अन्य दु:खांत नाटकों के लिए भी सत्य है। प्राचीन यूनानी नाटकों में अनेक स्मरणीय पात्र मिलते हैं किंतु नैतिक और मनोवैज्ञानिक उपकरणों के सहारे अंकित किए हुए शेक्सपियर के प्रमुख पात्र कहीं अधिक रोचक एवं आकर्षक हैं। आंतरिक द्वंद्व के उपयोग से दु:खांत नाटकों की पात्रकल्पना और भी अधिक चमत्कारपूर्ण हो गई है। शेक्सपियर के नाटकों के कुछ अन्य पात्र भी उल्लेखनीय हैं जैसे विदूषक और खलनायक। विदूषकों में फाल्स्टाफ टचस्टोन, फेस्टे और किंग लियर का स्वामिभक्त विदूषक आदि महत्वपूर्ण हैं। खलनायकों में रिचर्ड तृतीय, इयागो, एडमंड इयाशियों आदि की गणना होती है। जैसा हैज़लिट ने लिखा है, शैक्सपियर की शक्ति का पता इससे लगता है कि न केवल उनके महत्वपूर्ण पात्रों में वैशिष्ट्य है वरन् उनके बहुसंख्यक लघु पात्र भी अपना निजी महत्व रखते हैं।
यद्यपि शेक्सपियर के नाटकों में कहीं कहीं गद्य का प्रयोग हुआ है, तब भी वे मूलत: काव्यात्मक है। उनका अधिकांश भाग छंदोबद्ध है। यही नहीं, प्राय: सभी नाट्य रचनाएँ काव्यात्मक गुणों से भरी पड़ी हैं। कल्पना का प्रकाशन, आलंकारिक अभिव्यक्ति, संगीतात्मक लय तथा कोमल भावनाओं के निरूपण द्वारा शेक्सपियर ने मनोमुग्धकारी प्रभाव उत्पन्न कर दिया है। प्राचीन काल से नाटकों का कविता का एक भेद मात्र मानते आए थे और शेक्सपियर ने प्राचीन धारणा स्वीकार की। गद्य का प्रयोग यदा कदा विशेष प्रयोजन से हुआ है। किंतु सामान्य रूप से हम शेक्सपियर के नाटकों को काव्यनाट्य की संज्ञा दे सकते हैं। काव्यतत्व शुरू में अत्यधिक था किंतु शनै: शनै: उसका रूप संयत हो गया और प्रयोजन के विचार से उसका नियंत्रण होने लगा। इसी भाँति शेक्सपियर की शैली में समाविष्ट करने के लिए निरंतर प्रयास किया; फलत: प्रारंभिक नाटकों में विस्तृत वर्णनों एव सुंदर रूपकों का बाहुल्य है अपनी प्रतिभा की प्रौढ़ावस्था में जब शेक्सपियर अपने प्रसिद्ध दु:खांत नाटकों की रचना कर रहे थे उस समय तक उनकी शैली संतुलित हो गई थी। प्राथमिक अवस्था में अभिव्यक्ति का अधिक महत्व था और विचारों का कम। किंतु इस माध्यमिक काल में विचारों, भावों त