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मंगल गृह की मंगलकारी यात्रा....

मंगल गृह क्या है ?

मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, मंगल ग्रह की सतह की मिट्टी और वातावरण में मौजूद धूल में बहुत अधिक मात्रा में आयरन ऑक्साइड (लोहे पर लगा जंग) है। इसके कारण यह गहरा भूरे रंग का नजर आता है। इसी लालिमा की वजह से इसे लाल ग्रह भी कहते हैं। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है। पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। इसका वातावरण विरल है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। हमारे सौरमंडल का सबसे अधिक ऊँचा पर्वत, ओलम्पस मोन्स मंगल पर ही स्थित है। साथ ही विशालतम कैन्यन वैलेस मैरीनेरिस भी यहीं पर स्थित है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र पृथ्वी के समान हैं।

1965 में मेरिनर 4 के द्वारा की गयी पहली मंगल उडान से पहले तक यह माना जाता था कि ग्रह की सतह पर तरल अवस्था मे जल हो सकता है। यह हल्के और गहरे रंग के धब्बों की आवर्तिक सूचनाओं पर आधारित था विशेष तौर पर, ध्रुवीय अक्षांशों, जो लंबे होने पर समुद्र और महाद्वीपों की तरह दिखते हैं, काले स्त्रिअतिओन्स की व्याख्या कुछ प्रेक्षकों द्वारा पानी की सिंचाई नहरों के रूप में की गयी है। इन् सीधी रेखाओं की मौजूदगी बाद में सिद्ध नहीं हो पायी और ये माना गया कि ये रेखायें मात्र प्रकाशीय भ्रम के अलावा कुछ और नहीं हैं। फिर भी, सौर मंडल के सभी ग्रहों में हमारी पृथ्वी के अलावा, मंगल ग्रह पर जीवन और पानी होने की संभावना सबसे अधिक है।

वर्तमान में मंगल ग्रह की परिक्रमा तीन कार्यशील अंतरिक्ष यान मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस और टोही मार्स ओर्बिटर है, यह सौर मंडल में पृथ्वी को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। मंगल पर दो अन्वेषण रोवर्स (स्पिरिट और् ओप्रुच्युनिटी), लैंडर फ़ीनिक्स, के साथ ही कई निष्क्रिय रोवर्स और लैंडर हैं जो या तो असफल हो गये हैं या उनका अभियान पूरा हो गया है। इनके या इनके पूर्ववर्ती अभियानो द्वारा जुटाये गये भूवैज्ञानिक सबूत इस ओर इंगित करते हैं कि कभी मंगल ग्रह पर बडे़ पैमाने पर पानी की उपस्थिति थी साथ ही इन्होने ये संकेत भी दिये हैं कि हाल के वर्षों में छोटे गर्म पानी के फव्वारे यहाँ फूटे हैं। नासा के मार्स ग्लोबल सर्वेयर की खोजों द्वारा इस बात के प्रमाण मिले हैं कि दक्षिणी ध्रुवीय बर्फीली चोटियाँ घट रही हैं।

मंगल के दो चन्द्रमा, फो़बोस और डिमोज़ हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 5261 यूरेका के समान, क्षुद्रग्रह है जो मंगल के गुरुत्व के कारण यहाँ फंस गये हैं। फोबोस डिमोस से थोड़ा बड़ा है। फोबोस मंगल की तरफ झुकता जा रहा है। अनुमान है कि पांच करोड़ साल में यह मंगल से टकराकर नष्ट हो जाएगा। मंगल को पृथ्वी से नंगी आँखों से देखा जा सकता है। इसका आभासी परिमाण -2.9, तक पहुँच सकता है और यह् चमक सिर्फ शुक्र, चन्द्रमा और सूर्य के द्वारा ही पार की जा सकती है, यद्यपि अधिकांश समय बृहस्पति, मंगल की तुलना में नंगी आँखों को अधिक उज्जवल दिखाई देता है।

मंगल मिशन की कहानी

भारत ने वो कर दिखाया है, जो न अमेरिका कर सका, न चीन न कोई और विकसित देश।  भारत का प्रथम मंगल अभियान है। वस्तुत: यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की एक महत्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना के अन्तर्गत 5 नवम्बर 2013 को 2 बजकर 38 मिनट पर मंगल ग्रह की परिक्रमा करने हेतु छोड़ा गया एक उपग्रह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्रसे ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसऍलवी) सी-25 के द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया। इसके साथ ही भारत भी अब उन देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजे हैं। वैसे अब तक मंगल को जानने के लिये शुरू किये गये दो तिहाई अभियान असफल भी रहे हैं परन्तु 24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुँचने के साथ ही भारत विश्व में अपने प्रथम प्रयास में ही सफल होने वाला पहला देश बन गया है। इसके अतिरिक्त ये मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन भी है ।

यह उपग्रह, जिसका आकार लगभग एक नैनो कार जितना है, तथा संपूर्ण मार्स ऑरबिटर मिशन की लागत कुल 450 करोड़ रुपये या छह करोड़ 70 लाख अमेरिकी डॉलर रही है, जो एक रिकॉर्ड है। यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन या इसरो) ने 15 महीने के रिकॉर्ड समय में तैयार किया, और यह 300 दिन में 67 करोड़ किलोमीटर की यात्रा कर अपनी मंज़िल मंगल ग्रह तक पहुंचा। यह निश्चित रूप से दुनियाभर में अब तक हुए किसी भी अंतर-ग्रही मिशन से कहीं सस्ता है।

आंध्र प्रदेश में समुद्रतट पर स्थापित और भारत के रॉकेट पोर्ट कहे जाने वाले श्रीहरिकोटा में इसी वर्ष जून के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी टिप्पणी की थी, "हॉलीवुड की साइंस फिक्शन फिल्म 'ग्रेविटी' का बजट हमारे मंगल अभियान से ज़्यादा है... यह बहुत बड़ी उपलब्धि है..." उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह सोमवार को ही मंगल तक पहुंचे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के नए मार्स मिशन 'मेवन' की लागत लगभग 10 गुना रही है।

अपने मिशन की कम लागत पर टिप्पणी करते हुए इसरो के अध्यक्ष के, राधाकृष्णन ने कहा है कि यह सस्ता मिशन रहा है, लेकिन हमने कोई समझौता नहीं किया है, हमने इसे दो साल में पूरा किया है, और ग्राउंड टेस्टिंग से हमें काफी मदद मिली।

मंगल ग्रह की सतह पर पहले से मौजूद सबसे ज़्यादा चर्चित अमेरिकी रोवर यान 'क्यूरियॉसिटी' की लागत दो अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा रही थी, जबकि भारत की तकनीकी क्षमताओं तथा सस्ती कीमतों ने मंगलयान की लागत कम रखने में काफी मदद की।

भारतीय मंगलयान दुनिया का सबसे सस्ता अंतर-ग्रही मिशन है, और इसकी औसत लागत प्रति भारतीय चार रुपये से भी कम रही है, यानि सिर्फ 450 करोड़ रुपये, सो, अब भारत नया उदाहरण पेश करते हुए तेज़, सस्ते और सफल अंतर-ग्रही मिशनों की नींव डाल रहा है।

मंगल मिशन के सफलता के करीब पहुंचने के बाद भारत अब चांद पर रोबोट उतारने और अंतरिक्ष में मानव भेजने के कार्यक्रमों पर तेजी से आगे बढ़ेगा। मिशन मंगल में इसरो ने अभी तक अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं का शानदार प्रदर्शन किया है। माना जा रहा है कि इसके बाद इसरो के लिए चंद्रयान-2 और अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजना ज्यादा कठिन लक्ष्य नहीं रह गया है।

लाल ग्रह के करीब पहुंचने के बाद मंगलयान के इंजन को चालू करने का परीक्षण भी सफल रहा है। इसरो के लिए यह सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था क्योंकि करीब तीन सौ दिन से बंद पड़े इंजन को 21.5 करोड़ किलोमीटर की दूरी (रेडियो डिस्टेंस) से कमांड देकर चालू करना था। इसके बाद इसरो के वैज्ञानिक अब नए अभियानों के लिए कमर कसेंगे।

एक ओर मंगल मिशन इतिहास के पन्नों पर स्वयं को सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा रहा था, वहीं दूसरी ओर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के कमांड केंद्र में अंतिम पल बेहद व्याकुलता भरे थे। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के साथ मंगल मिशन की सफलता के साक्षी बने मोदी ने कहा विषमताएं हमारे साथ रहीं और मंगल के 51 मिशनों में से 21 मिशन ही सफल हुए हैं, लेकिन हम सफल रहे। खुशी से फूले नहीं समा रहे प्रधानमंत्री ने इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन की पीठ थपथपाई और अंतरिक्ष की यह अहम उपलब्धि हासिल कर इतिहास रचने के लिए भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को बधाई दी।

मंगलयान की सफलता के साथ ही भारत पहली ही कोशिश में मंगल पर जाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। यूरोपीय, अमेरिकी और रूसी यान लाल ग्रह की कक्षा में या जमीन पर पहुंचे हैं, लेकिन कई प्रयासों के बाद। मंगल यान को लाल ग्रह की कक्षा खींच सके, इसके लिए यान की गति 22.1 किमी प्रति सेकंड से घटा कर 4.4 किमी प्रति सेकंड की गई और फिर यान में डाले गए कमांड द्वारा मार्स ऑर्बिटर इन्सर्शन (मंगल परिक्रमा प्रवेश) की प्रक्रिया संपन्न हुई।

जिस समय एमओएम कक्षा में प्रविष्ट हुआ, पृथ्वी तक इसके संकेतों को पहुंचने में करीब 12 मिनट 28 सेकंड का समय लगा। ये संकेत नासा के कैनबरा और गोल्डस्टोन स्थित डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशनों ने ग्रहण किये और आंकड़े वास्तविक समय (रीयल टाइम) पर यहां इसरो स्टेशन भेजे गए। अंतिम पलों में सफलता का पहला संकेत तब मिला जब इसरो ने घोषणा की कि भारतीय मंगल ऑर्बिटर के इंजनों के प्रज्ज्वलन की पुष्टि हो गई है। इतिहास रचे जाने का संकेत देते हुए इसरो ने कहा मंगल ऑर्बिटर के सभी इंजन शक्तिशाली हो रहे हैं। प्रज्ज्वलन की पुष्टि हो गई है। मुख्य इंजन का प्रज्ज्वलित होना महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह करीब 300 दिन से निष्क्रिय था और 5 नवम्बर 2013 को मात्र 4 सेकेंड के लिए सक्रिय हुआ था।

यह पूरी तरह इस पार या उस पार वाली स्थिति थी, क्योंकि तमाम कौशल के बावजूद एक मामूली सी भूल ऑर्बिटर को अंतरिक्ष की गहराइयों में धकेल सकती थी। यान की पूरी कौशल युक्त प्रक्रिया मंगल के पीछे हुई जैसा कि पृथ्वी से देखा गया। इसका मतलब यह था कि मार्स ऑर्बिटर इन्सर्शन (एमओई) प्रज्ज्वलन में लगे 4 मिनट के समय से लेकर प्रक्रिया के निर्धारित समय पर समापन के तीन मिनट बाद तक पथ्वी पर मौजूद वैज्ञानिक दल यान की प्रगति नहीं देख पाए।

ऑर्बिटर अपने उपकरणों के साथ कम से कम 6 माह तक दीर्घ वृत्ताकार पथ पर घूमता रहेगा और उपकरण एकत्र आंकड़े पृथ्वी पर भेजते रहेंगे। मंगल की कक्षा में यान को सफलतापूर्वक पहुंचाने के बाद भारत लाल ग्रह की कक्षा या जमीन पर यान भेजने वाला चौथा देश बन गया है। अब तक यह उपलब्धि अमेरिका, यूरोप और रूस को मिली थी। कुल 450 करोड़ रुपये की लागत वाले मंगल यान का उद्देश्य लाल ग्रह की सतह तथा उसके खनिज अवयवों का अध्ययन करना तथा उसके वातावरण में मीथेन गैस की खोज करना है। पथ्वी पर जीवन के लिए मीथेन एक महत्वपूर्ण रसायन है।

इस अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण 5 नवंबर 2013 को आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित पीएसएलवी रॉकेट से किया गया था। यह 1 दिसंबर 2013 को पथ्वी के गुरूत्वाकर्षण से बाहर निकल गया था।

भारत का एमओएम बेहद कम लागत वाला अंतरग्रही मिशन है। नासा का मंगल यान मावेन 22 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हुआ था। भारत के एमओएम की कुल लागत मावेन की लागत का मात्र दसवां हिस्सा है। कुल 1,350 किग्रा वजन वाले अंतरिक्ष यान में पांच उपकरण लगे हैं। इन उपकरणों में एक सेंसर, एक कलर कैमरा और एक थर्मल इमैजिंग स्पेक्ट्रोमीटर शामिल है। सेंसर लाल ग्रह पर जीवन के संभावित संकेत मीथेन यानी मार्श गैस का पता लगाएगा। कलर कैमरा और थर्मल इमैजिंग स्पेक्ट्रोमीटर लाल ग्रह की सतह का तथा उसमें मौजूद खनिज संपदा का अध्ययन कर आंकड़े जुटाएंगे। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने बताया कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और मावेन की टीम ने भारतीय यान के मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचने के लिए इसरो को बधाई दी है।

भारत का मंगल यान मंगल ग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंच गया है।

इससे 48 घंटे पहले नासा का उपग्रह "मैवेन' भी यहां पहुंचा। मंगल को हिंदू पौराणिक कथाओं में पृथ्वी का पुत्र बताया गया है । मंगल और पृथ्वी 2003 में सबसे करीब 5.6 करोड़ किलोमीटर पर थे। इतना नजदीक दोनों ग्रह 50 हजार साल बाद आए थे। अब 2018 में 5.7 करोड़ किलोमीटर पर होंगे। इनके बीच की अधिकतम दूरी करीब 39 करोड़ किलोमीटर हो सकती है। सर्दी के मौसम में मंगल पर न्यूनतम तापमान -133 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है, जो धरती पर रिकॉर्ड सबसे कम तापमान (अंटार्कटिका -89 डि.से.) से 34 डि.से. कम है। गर्मियों में मंगल का तापमान 27 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है। मंगल का सबसे बड़ा क्रेटर (गड्ढा) 'नॉर्थ पोलर बेसिन' है। लाल ग्रह के उत्तरी गोलार्ध में स्थित यह क्रेटर पूरे ग्रह का करीब 40 फीसदी हिस्सा कवर करता है। इसी स्थान पर क्राइस प्लेनीशिया साइट है, जहां वेकिंग-1 लेंडर का उतारा गया था। मंगल के वातावरण में सिर्फ 0.14 फीसदी ऑक्सीजन है। वहीं धरती पर इसकी मात्रा करीब 21 फीसदी है। मंगल पर सबसे ज्यादा (95 फीसदी) कार्बन डाई ऑक्साइड है। मंगल का आकार धरती से करीब आधा है। इसका व्यास 6,800 किलोमीटर है, लेकिन इसका द्रव्यमान पृथ्वी की तुलना में सिर्फ 10 फीसदी है। इसका मतलब कि यह धरती जितना ठोस नहीं है। मंगल पर पृथ्वी से 40 मिनट बड़ा दिन है। यानी वहां दिन-रात की कुल अवधि 24 घंटे 40 मिनट होती है।

मंगल ग्रह का एक साल धरती से दोगुना बड़ा है। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 365 दिन में पूरी कर लेती है, वहीं मंगल को यह दूरी तय करने में 687 दिन लगते हैं। कैलेंडर 24 महीने का होगा

मंगल पर धरती से एक तिहाई गुरुत्वाकर्षण है। यानी यदि आपका वजन 75 किलोग्राम होगा तो वहां आप सिर्फ 25 किलोग्राम के हो जाएंगे। इसके चंद्रमा फोबोस पर तो आपका वजन सिर्फ 75 ग्राम रह जाएगा। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के फीनिक्स लैंडर द्वारा जुटाई जानकारियों से पता चलता है कि मंगल पर पानी बर्फ के रूप में जमा है। हालांकि इसमें अधिक मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड मिली है। कुछ मात्रा में जल वाष्प और ऑक्सीजन भी है। यह वहां जीवन के लिए सबसे सकारात्मक संकेत है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस ग्रह पर करीब साढ़े तीन अरब साल पहले भयंकर बाढ़ आई थी। हालांकि यह पता नहीं चलता कि यह पानी कहां से आया और कहां चला गया। मंगल की भौगोलिक स्थिति बहुत अच्छी है। यह अपनी अक्ष पर 25.19 डिग्री झुका है, जबकि पृथ्वी का 23.44 डिग्री झुकी है। यह समानता इस बात का संकेत है कि वहां मौसम पृथ्वी जैसा ही है। मंगल पर धूल भरे तूफान उठते हैं। कभी-कभी ये इतने भयंकर होते हैं कि पूरे लाल ग्रह को ढंक लेते हैं। मं&


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