भारत का दूसरा सफल परमाणु परिक्षण - ऑपरेशन शक्ति ....
68 साल पहले अमेरिका ने जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए थे। यह मानवजाति के इतिहास में परमाणु हथियारों का सबसे पहला प्रयोग था। लेकिन भारत ने परमाणु बम का परीक्षण हमेशा शांति के लिए किया। इस सफलता के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘जय जवान, जय किसान’ और ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया था। यह दिन हमारी प्रौद्योगिकी ताकत को दर्शाता है। इस दिन भारत अपनी उन्नत स्वदेशी प्रौद्योगिकी का परिचय देते हुए दुनिया के ताकतवर देशों के समूह में शामिल हो गया है।
11 मई, 1998 को भारत ने राजस्थान के पोखरण में दूसरा परमाणु परीक्षण किया था। राजस्थान के जैसलमेर जिले में थार रेगिस्तान में स्थित पोखरण एक प्राचीन विरासत का शहर रहा है। इसके चारों ओर पांच बड़ी लवणीय चट्टानें हैं। पोखरण का शाब्दिक अर्थ है पांच मृगमरीचिकाओं का स्थान। यह स्थल पहली बार सुर्खियों में तब आया, जब भारत ने यहां श्रृंखलाबद्ध परमाणु परीक्षण किए। 18 मई, 1974 को, पोखरण में भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया, जिसका कूट था ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा।
उस दौर में जब भी परमाणु परीक्षण का ज़िक्र आता था, पूरी दुनिया की निगाहें भारत पर टिक जाती थीं। अमेरिकन सेटेलाइट भारत पर खास नजरें गड़ाएं हुईं थी, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में कलाम और उनकी टीम ने इस ऑपरेशन को ऐसे अंजाम दिया कि अमेरिका सहित पूरी दुनिया आवाक रह गई थी।
इसका नाम दिया गया था ऑपरेशन शक्ति। इस ऑपरेशन को बेहद गुप्त रखा गया। बताते चलें कि वाजपेयी सरकार के कई मंत्रियों को भी इसकी भनक नहीं थी। जब थार के रेगिस्तान में धमाका हुआ तो पूरी दुनिया भौंचक्की रह गई। पाकिस्तान और चीन के मानो कंठ सूख गए। बौखलाए अमेरिका ने भारत पर दनादन पाबंदियां लगा दी। फिर इससे विचलित हुए बिना अटल सरकार अटल बनी रही। जवाब में पाकिस्तान ने भी कुछ ही दिनों के अंतराल में परमाणु विस्फोट किया। दक्षिण पूर्व एशिया के दो परस्पर प्रतिद्वंद्वी देशों में परमाणु शक्ति की होड़ को देख संयुक्त राष्ट्र तक को हस्तक्षेप करना पड़ा और सुरक्षा परिषद में इसके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया गया। हालांकि भारत ने स्पष्ट कहा कि उसका उद्देश्य परमाणु परीक्षण शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है और वह इसके जरिए नाभिकीय हथियार बनाने का इरादा नहीं रखता है। वहीं भारत के इस परीक्षण की तैयारी को अमेरिका को नहीं पता चल पाने के चलते अमेरिकी खुफिया एजेंसी को काफी शर्मिंदगी का भी सामना करना पड़ा था। भारत के इस परीक्षण के बाद कनाडा ने भी आलोचना की थी और भारत से अपने राजदूत तक को वापस बुला लिया था। जापान ने भी इस परीक्षण के खिलाफ भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया था। जापान ने भारत के साथ सभी आर्थिक समझौतों पर रोक लगा दी थी। पोखरण द्वितीय पर अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार को सद्दाम ने बधाई दी थी| जबकि कई राष्ट्रों ने आर्थिक प्रतिबन्ध लादे थे|
वहीं एक तरफ जहां दुनिया के कई देश भारत के इस परमाणु परीक्षण की आलोचना कर रहे थे तो ब्रिटेन, फ्रांस, रूस ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हुए भारत की कोई भी आलोचना नहीं की। वहीं इस दिन को यादगार बनाने के लिए 11 मई को आधिकारिक रूप से नेशनल टेक्नोलॉजी डे घोषित किया गया था। इस दिन विज्ञान के क्षेत्र में बेहतरी योगदान देने वालों को सम्मानित किया जाता है।
भारत ने 11 और 13 मई, 1998 को राजस्थान के पोरखरण परमाणु स्थल पर पांच परमाणु परीक्षण किये थे। इनमें 45 किलोटन का एक तापीय परमाणु उपकरण शामिल था। इसे आमतौर पर हाइड्रोजन बम के नाम से जाना जाता है। 11 मई को हुए परमाणु परीक्षण में 15 किलोटन का विखंडन उपकरण और 0.2 किलोटन का सहायक उपकरण शामिल था।
ग्रामीण भारत के विभिन्न इलाकों में लोग बुखार और लू के इलाज के लिए प्याज का इस्तेमाल करते हैं लेकिन करीब डेढ़ दशक पहले केंद्र की तत्कालीन एनडीए सरकार ने राजस्थान में पोखरण परमाणु परीक्षण की रेडियो धर्मिता (विकिरण) को दबाने के लिए इसका इस्तेमाल किया था। ऐसा माना जाता है कि इसी वजह से साल 1999 में प्याज की कीमतें बढ़ गई थीं और देश में उबाल पैदा हो गया था। ऐसा कहा जाता है कि एनडीए सरकार ने पोखरण परमाणु परीक्षण की रेडियो धर्मिता (विकिरण) को दबाने के लिए परमाणु परीक्षण वाले स्थानों पर कई टन प्याज दफन कर दिए थे। इससे देश में प्याज की कमी हो गई थी और बाजार में इसकी कीमतें आसमान छूने लगी थीं। देश की राजधानी दिल्ली समेत अन्य भारतीय शहरों में उस समय प्याज 60 से 65 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा था। हालांकि पोखरण में परमाणु परीक्षण वाले स्थानों पर हजारों टन प्याज के दफन किए जाने के सुबूत अभी तक सामने नहीं आ पाए हैं।
गौरतलब है कि तत्कालीन रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार कलाम के अलावा उस समय परमाणु उर्जा आयोग के अध्यक्ष आर चिदंबरम और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक रहे अनिल काकोडकर ने पोखरण-2 परमाणु परीक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
98 में हुए परमाणु परीक्षण को 1995 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहराव ने कराने का फैसला लिया था, लेकिन अमेरिकी सैटेलाइट ने परीक्षण की तैयारियों का पता लगा लिया। उसके बाद ही इस ऑपरेशन को दुनिया की नजरों में ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
पूर्व राष्ट्रपति और देश के मिसाइल कार्यक्रम के जनक डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम ने खुलासा किया है कि पोखरण परमाणु विस्फोट से पहले दुनिया भर के जासूसों का ध्यान बांटने और उन्हें छकाने के लिए भरपूर मिसाइलें, रॉकेट और बम का इस्तेमाल किया गया था।
कलाम ने तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के नेतृत्व में 1998 में पोखरण में एक के बाद एक पांच परमाणु परीक्षण किए थे और उसके बाद दुनिया भर में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ द्वारा आयोजित 7वें आर एन काव मेमोरियल लेक्चर में कलाम ने कहा कि 1998 की गर्मियों में पोखरण परमाणु विस्फोट से दो दिन पहले दुनिया भर का ध्यान बंटाने के लिए भारत ने सुनियोजित तरीके से मिसाइलों, रॉकेट और बम का इस्तेमाल किया।
1964 में जब पहली बार भारत ने परमाणु परीक्षण किया था तो अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में कहा था कि परमाणु बम का जवाब परमाणु बम से ही दिया जा सकता है किसी और चीज से नहीं। वहीं जब भारत ने सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण किया था तो वाजपेयी ने इस परीक्षण के तुरंत बाद मीडिया में आकर कहा था कि भारत अब परमाणु शक्ति वाला देश है, हमारे पास अब परमाणु बम है। इस सफल परीक्षण के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रेस कांफ्रेंस करके इस परीक्षण की सबको जानकारी दी थी। उन्होंने प्रेस में आकर बयान दिया था कि मैं देश के वैज्ञिनकों को इस सफलतापूर्वक परीक्षण की बधाई देता हूं, साथ हीं उन्होंने कहा था कि आज से भारत पूरी तरह से परमाणु शक्तिशाली देश है।
भारत के कुल पांच मुख्य परमाणु परीक्षण है। उन को मुख्य रूप से चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। ये चार तरह के परमाणु परीक्षण किये है - (१) विखण्डनीय बम या फिशन डिवाइस बम: यह परमानु बम बनाये जाने के लिए किया गया सामान्य परीक्षण था जिसकी क्षमता सन १९७४ मे किये गये परीक्षण के समान अर्थात १५ किलो टन थी। (२) कम क्षमता वाला विस्फोट या लो यील्ट डिवाइस: इसकी क्षमता १० किलो अन से नीचे अर्थात इकाई किलो टन क्षमता तक ही सीमित मानते है। इस परीक्षण का एक उद्देश्य ऍसे आंकडे प्राप्त करना था जिस से आगे जाकर प्रयोगशाला में कम्प्यूटर आधारित परीक्षण किये जा सकें। (३) हाइड्रोजन बम परीक्षा या थर्मो न्यूकिलयर डिवाइस: इसे आज सुपर बम भी कहा जाता है। इसकी विनाशक क्षमता सामान्य परमाणु बम की तुकना में सॉ से हजार गुणा तका अधिक है। परमाणु बम की विस्फोटक क्षमता को किलो टन मे मापते है जबकि हाइड्रोजन बम की क्षमता को मेगावाट में नापते है। (४) सब किलो टन परिक्षण भारत मे १३ मई को पुनः दो परिक्षण किये गये। ये परिक्षण सब किलोटन या एक किलोटन से कम क्षमता वाले थे। इस परिक्षण के बाद यह दावा किया गया है कि इन से भारत में कम्प्यूटर आनुकरण एव प्रयोगशालाओं में किये जाने वाले अपक्रान्तिक परिक्षण की क्षमता प्राप्त करलीच् है।
इस अभियान की सबसे बड़ी बात यह थी कि भारत पर इस परीक्षण तो नहीं करने का भारी दबाव था। जिसके चलते भारतीय वैज्ञानिक सेना की वर्दी में हमेशा काम करते थे। यही नहीं अमेरिकी सैटेलाइट्स से बचने के लिए देश के वैज्ञानिक रात में ही इस ऑपरेशन पर काम किया करते थे।
भारत ने 11 और 13 मई 1998 को पाँच परमाणु परीक्षण किए थे. इनमें से एक थर्मो न्यूक्लियर डिवाइस यानी हाइड्रोजन बम का परीक्षण था । जोकि विवाद का एक सबसे बड़ा कारण बना |
परीक्षण के एक दिन पहले कई एजेंसियां एक्टिव मोड में थीं और अपने-अपने काम को अंजाम दे रही थीं। अगले दो दिन चांद बिल्कुल छुपा रहने वाला था और रातें अंधेरी होने वाली थीं। चांदीपुर फ्लाइट टेस्ट रेंज से उस समय एक के बाद एक 12 त्रिशूल मिसाइलें लांच की गईं। हर दो घंटे में एक मिसाइल लांच की गई। अग्नि मिसाइल की लांचिंग की तैयारियां भी तेज कर दी गईं।
कलाम के मुताबिक पोखरण में विस्फोट से दूर पिनाका जैसे रॉकेट छोड़े गए। इसके अलावा वायुसेना के विमानों ने रनवे विध्वंस करने का अभ्यास भी उसी दौरान शुरू कर दिया। इसके अगले दिन पता चला कि भारत ने तीन परमाणु परीक्षण किए हैं। अगले दिन दो और परीक्षण किए गए।
कलाम ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने उन्हें बुलाकर परमाणु परीक्षण की तैयारी करने को कहा। इसके दो दिन बाद ही 1996 के आम चुनाव के नतीजे घोषित होने वाले थे। नतीजे राव के खिलाफ गए तो उन्होंने फिर कलाम को बुलाया और परीक्षण के बारे में भावी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को ब्रीफ करने को कहा ताकि इतना महत्वपूर्ण फैसला सत्ता परिवर्तन के बाद अटके न। कलाम ने कहा कि ये घटना एक देशभक्त राजनेता की परिपक्वता और पेशवर रवैये को दर्शाती है जो समझता है कि देश राजनीति से कहीं ऊपर है।
पोखरण.दो परमाणु परीक्षण पर उठे विवाद पर विराम लगाने की कोशिश के तहत पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने कहा कि परीक्षण पूरी तरह से सफल थे और इससे वांछित परिणाम मिले. कलाम ने कहा कि परीक्षण के बाद दो प्रयोगात्मक परिणामों (1) मौके और इसके आसपास भूकंपीय मापन और (2) परीक्षण स्थाल पर परीक्षण के बाद रेडियोधर्मिता के मापन के आधार पर विस्तृत समीक्षा की गई. डीआरडीओ के तत्कालीन महानिदेश रहे कलाम ने कहा कि इन आंकड़ों से परियोजना दल इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि तापीय परमाणु परीक्षण के वांछित डिजाइन लक्ष्य को प्राप्त कर लिया गया है.
भारत के परमाणु शक्ति संपन्न होने की दिशा में काम तो वर्ष 1945 में ही शुरू हो गया था, जब होमी जहांगीर भाभा ने इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की नींव रखी। लेकिन सही मायनों में इस दिशा में भारत की सक्रियता 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद बढ़ी। इस युद्ध में भारत को शर्मनाक तरीके से अपने कई इलाके चीन के हाथों गंवाने पड़े थे। इसके बाद 1964 में चीन ने परमाणु परीक्षण कर महाद्वीप में अपनी धौंसपंट्टी और तेज कर दी। दुश्मन पड़ोसी की ये हरकतें भारत को चिंतित व विचलित कर देने वाली थीं। लिहाजा सरकार के निर्देश पर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने प्लूटोनियम व अन्य बम उपकरण विकसित करने की दिशा में सोचना शुरू किया।
भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज किया और 1972 में इसमें दक्षता प्राप्त कर ली। 1974 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के पहले परमाणु परीक्षण के लिए हरी झंडी दे दी। इसके लिए स्थान चुना गया राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित छोटे से शहर पोखरण के निकट का रेगिस्तान और इस अभियान का नाम दिया गया मुस्कुराते बुद्ध। इस नाम को चुने जाने के पीछे यह स्पष्ट दृष्टि थी कि यह कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए है।
18 मई 1974 को यह परीक्षण हुआ। परीक्षण से पूरी दुनिया चौंक उठी, क्योंकि सुरक्षा परिषद में बैठी दुनिया की पांच महाशक्तियों से इतर भारत परमाणु शक्ति बनने वाला पहला देश बन चुका था। खासकर जिस तरह से दुनिया के दबाव के बावजूद भारत ने सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण किया उसने दुनिया में भारत का डंका बजाने का काम किया है।