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रिचर्ड फ़ाइनमेन - एक महान भौतिक वैज्ञानिक....

रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन, का जन्म 11मई 1918 में हुआ था । बचपन में फाइनमेन अक्सर सोचते थे कि वह बडे होकर क्या बनें: विदूषक या वैज्ञानिक। बडे होकर उन्होंने इन दोनो भूमिकाओं को एक साथ बखूबी निभाया। फाइनमेन बचपन के दिनों में रेडियों ठीक किया करते थे। उस समय वाल्व रेडियो हुआ करते थे। उनके पड़ोसी का रेडियो में शुरू होने के थोड़ी देर बाद खरखराने लगता था। उसने फाइनमेन से रेडिये ठीक करने के लिये कहा। फाइनमेन रेडियो को छूने के बजाय वही बैठ कर सोचने लगे। उन्हे लगा कि गर्म होने पर बिजली का अवरोध बढ जाता है जिससे खरखराहट बढ जाती है और दो वाल्वों को एक दूसरे से बदलने में यह दूर हो सकती है। उसने ऐसे ही किया और खरखराहट बन्द हो गयी और तभी से कई लोग उन्हे उस लड़के की तरह से याद रखते हैं जो केवल सोच कर रेडियो ठीक किया करता था।

स्कूल में वह गणित में सबसे अच्छे और गणित टीम के हीरो थे। पर उन्होंने गणित को छोड़ दिया। उन्हे लगा कि गणित मे उच्च शिक्षा प्राप्त करके वे दूसरों को गणित पढ़ाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते। वह कुछ व्यवहारिक करने का सोच कर, पहले इलेक्ट्रिकल इन्जीनियरिंग की तरफ गये पर बाद में भौतिक शास्त्र की पढ़ाई की। शायद यही ठीक था। यह बीसवीं शताब्दी थी – भौतिक शास्त्रियों की शताब्दी। इस शताब्दी मे यदि कोई विज्ञान की दुनिया को बदलने का दम रखता था तो भौतिक शास्त्र ही उसका विषय था। यह उसी तरह से जैसे इक्कीसवीं शताब्दी जीव शास्त्रियों की शताब्दी है। चलिये हम वापस फाइनमेन पर चलें। फाइनमेन ने स्नातक की शिक्षा मैसाचुसेट इं‍स्टिट्यूट आफ टेक्नोलोजी (MIT)से पूरी की। वह वहीं पर शोध कार्य करना चाहते थे पर फिर प्रिंसटनमे शोध कार्य करने के लिये चले गये। 

यहां पर युवा फाइनमेन को व्हीलर के साथ शोध करने का मौका मिला। व्हीलर को नोबेल पुरूस्कार तो नहीं मिला लेकिन वे रॉबर्ट ओपेन हाइमरऔर एडवार्ड टेलेर जैसे ही ऐसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे जिन्हें दुर्भाग्यवश नोबेल पुरस्कार नहीं मिला। वे वह काम कर चुके थे जिसमें किसी को भी नोबेल पुरस्कार दिया जा सकता था। वे कुछ आडम्बर प्रिय थे कुछ अपनी अहमियत भी जताते थे। उन्होंने फाइनमेन को सप्ताह में एक दिन का कुछ निश्चित समय मिलने का दिया । पहले दिन मुलाकात के समय वह सूट पहने थे उन्होंने अपनी जेब से अपनी सोने की विराम घडी निकाल कर मेज पर रख दी ताकि फाइनमेन को पता चल सके कि कब उसका समय समाप्त हो गया है। फाइनमेन उस समय विद्यार्थी थे। उन्होंने एक बाजार से एक सस्ती विराम घड़ी खरीदी – उनके पास मंहगी घड़ी खरीदने के लिये पैसे नहीं थे। अगली मीटिंग पर उन्होंने अपनी सस्ती घड़ी उस सोने की घड़ी के पास रख दी। व्हीलर को भी पता चलना चाहिये कि उनका समय भी महत्वपूर्ण है। व्हीलर को मजाक समझ में आया और दोनो दिल खोल कर हंसे। दोनों ने घड़ियां हटा ली। उनका रिश्ता औपचारिक नहीं रहा, वे मित्र बन गये, उनकी बातें हंसी मजाक में बदल गयीं, और हंसी-मजाक नये मौलिक विचारों मे।

इसी बीच दूसरा महायुद्ध शुरू हो गया। जर्मनी मे परमाणु बम बनाने का काम हो रहा था, यदि पहले वहां बन जाता तो हिटलर अजेय था। अमेरिका की लॉस एलमॉसलेबॉरेटरी मे दुनिया के वैज्ञानिक इक्कठा होकर परमाणु बम बनाने के लिये एकजुट हो गये। फाइनमेन को भी वहां बुलाया गया और उन्होने वहां काम किया।

लॉस एलमॉस मे सुरक्षा का जिम्मा सेना का था जिनके अपने नियम अपने कानून थे। यह नियम फाइनमेन को अक्सर समझ मे नहीं आते थे। फाइनमेन ताले खोलने मे माहिर थे। वे सेना के अधिकारियों को तंग करने के लिये की लेबोरेटरी की तिजोरियों खोल कर उसमे कागज पर “guess who” लिख कर छोड़ देते थे पर तिजोरियों से कुछ निकालते नहीं थे। यह वह केवल, सेना के अधिकारियों को बताने के लिये करते थे कि उनकी सुरक्षा प्रणाली कितनी गलत है।

उनके जीवन का एक और दृष्टान्त – बिल्‍कुल असम्भव सा लगता है, हम हमेशा सोचते हैं कि यह सब कहानियों या फ़िल्मो में होता है इस वास्तविक दुनियां में नहीं।

स्कूल के दिनों में फाइनमेन का अपनी सहपाठिनी अरलीन से प्रेम हो गया। उन्होने शादी तब करने की सोची जब फाइनमेन को कोई नौकरी मिल जाय। जब फाइनमेन शोध कार्य कर रहे थे तब अरलीन को टी.बी. हो गयी उसके पास केवल चन्द सालों का समय था। उन दिनों टी.बी. का कोई इलाज नहीं था। अरलीन को टी.बी. हो जाने के कारण, फाइनमेन उसे चूम भी नहीं सकते थे। उन्हे मालुम था कि अरलीन के साथ उसके सम्बन्ध केवल अध्यात्मिक ही रहेगें। इन सब के बावजूद, फाइनमेन अरलीन से शादी करना चाहते थे। उनके परिवार वाले और मित्र इस शादी के खिलाफ थे। इस बारे मे उनकी अपने पिता से अनबन भी हो गयी। इसके बावजूद फाइनमेन ने अरलीन के साथ शादी की।

फाइनमेन, जब लॉस एलमॉस में काम कर रहे थे तो वहां के निदेशक रौबर्ट ओपेन्हाईमर ने अरलीन को पास ही के सैनीटेरियम में भरती करवा दिया ताकि फाइनमेन उससे मिल सके| फाइनमेन के लॉस एलमॉस रहने के दौरान ही अरलीन की मृत्यु हो गयी। इस घटना चक्र पर एक फ़िल्म भी बनी है जिसका नाम इंफिनिटी (Infinity) है इसे मैथयू बौरडविक ने इसे निर्देशित किया है।

फाइनमेन न केवल एक महान वैज्ञानिक थे पर एक महान अध्यापक भी थे। उन्हे मालुम था कि अपनी बात दूसरे तक कैसे पहुंचायी जाय। व्याख्यानशाला उनके लिये रंगशाला थी, जिसमें नाटक भी था और आतिशबाजी भी।

फाइनमेन के द्वारा भौतिक शास्त्र पर कैल-टेक के लेक्चरों का जिक्र इस लेख के आरंभ मे। इन लेक्चरों को उन्होने सितम्बर 1961-मई 1963 मे दिया था। यह लेक्चर खास थे इसलिये इन्हें हमेशा के लिये सुरक्षित रखा गया और बाद मे ये तीन लाल किताबों के रूप में छापे गये। फाइनमेन सप्ताह में केवल दो लेक्चर देते थे बाकी समय वह इन लेक्चरों को तैयार करने में लगाते थे। लेक्चर की हर लाइन, हर मजाक को (जो वह लेक्चरों के दौरान करते थे) पहले से सोच विचार कर रखते थे। कभी भी उनके साथ लेक्चर के नोटस नहीं होते थे। बस केवल एक छोटा सा कागज रहता था जिसमें आगे बताने के लिये कुछ खास शब्द केवल संकेत देने के लिये रहते थे। यह तीन साल, संसार मे किसी भी विश्वविद्यालय के, किसी भी विषय पर के लेक्चरों मे अद्वितीय हैं। न कभी ऐसे हुये न शायद फिर कभी होंगे। क्योंकि मालुम नहीं कि फिर कभी ऐसा व्यक्ति आयेगा कि नहीं।

फाइनमेन के लिये अंग्रेजी – बेकार, और दर्शन शास्त्र – तिरस्कृत विषय था। धर्म से उनका कोई वास्ता नहीं था। घुमाफ़िराकर पर बात करना उनकी आदत में नहीं था। वह हमेशा सीधी बात करते थे। उनका मतलब वही होता था जो वे कहते थे। वे इस बात से भ्रमित हो जाते थे यदि उनकी सीधी बात दूसरे को परेशान कर देती थी।

28 जनवरी 1986 में चैलेंजर अंतरिक्ष शटल का विस्फोट आकाश में हो गया था, इसकी जांच करने के लिये एक कमीशन बैठा। फाइनमेन उसमें वैज्ञानिक की हैसियत से थे। यह विस्फोट, अंतरिक्ष शटल में कुछ घटिया किस्म का सामान लगाने के कारण हुआ था। नासा का प्रशासन (जिस पर सेना का जोर है) इसे दबाना चाहता था पर वैज्ञानिक इसे उजागर करना चाहते थे। कमीशन ने अपने निष्कर्ष को टीवी के सामने सीधे प्रसारण मे बताना शुरू किया (इसमें घटिया किस्म के सामान लगाने की बात स्पष्ट नहीं थी )। उस समय टीवी पर ही, सबके सामने फाइनमेन ने एकदम ठन्डे पानी के अन्दर घटिया सामान को डाल कर दिखाया कि वास्तव में विस्फोट क्यों हुआ था। यह सीधा प्रसारण था इसलिये फाइनमेन का प्रदर्शन रोका नहीं जा सका और यह दो मिनट की क्लिप कुछ घन्टो के अन्दर दुनिया की टीवी पर सबसे ज्यादा दिखायी जाने वाली समाचार क्लिप बन गयी।

रिचर्ड फ़ाइनमेन की मृत्यु 1988 में कैंसर से हो गयी।


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