विद्यार्थी जीवन का अदभुत इतिहास बन गया - "स्वयं सैटेलाइट"....
भारत के पुणे शहर के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ने वाले 176 स्टूडेंट्स का 9 साल पुराना सपना आखिरकार 22 जून 2016 को सच हो गया। दरअसल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 22 जून 2016, बुधवार सुबह अंतरिक्ष में एकसाथ 20 सैटेलाइट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया । इनमें से जहां 17 सेटेलाइट दूसरे देशों के थे वहीं तीन सेटेलाइट भारत के थे | इनमें से एक 'स्वयं' सेटेलाइट पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्रों ने डिजाइन किया और बनाया है |
जब भारतीय ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन यानी पोलर सैटेलाइट लॉंच व्हीकल यानी पीएसएलवी-सी34 ने विभिन्न देशों के 20 उपग्रहों को लेकर अपनी उड़ान भरी तो भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान के इतिहास में एक और अध्याय जुड़ गया |
पीएसएलवी-सी34 द्वारा प्रक्षेपित किए गए 20 उपग्रहों में तीन भारतीय उपग्रह ‘कार्टोसैट’, ‘सत्यभामासैट’ और ‘स्वयं’ हैं| 13 अमेरिकी उपग्रह हैं; 2 उपग्रह कनाडा के हैं तथा एक-एक उपग्रह इंडोनेशिया और जर्मनी का है. पीएसएलवी-सी34 पर ले जाए गए सभी 20 उपग्रहों का वजन लगभग 1288 किलोग्राम है. पीएसएलवी दुनिया का सबसे अधिक भरोसेमंद प्रक्षेपण यान है और इसकी यह 36 वीं उड़ान थी |
इस सैटेलाइट की खास विशेषता यह है की, इसे किसी बड़े नामचीन कॉलेज के छात्रों द्वारा नहीं तैयार किया गया बल्कि इसे एक साधारण इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों द्वारा उनकी कड़ी मेहनत से तैयार किया गया है ।
जिसमे कुल 176 स्टूडेंट्स शामिल है, जिन्होंने इसे 8 वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया | । इस सैटेलाइट का वजन 1 हजार ग्राम (1 किलोग्राम) से भी कम है। इसलिए इसे पीको उपग्रह भी कहा जा रहा है। जब इस सैटेलाइट को लांच करने की बात कही गई तो, सबसे पहले वैज्ञानिकों की टीम ने इस का परिक्षण करना आरम्भ किया और लॉन्च से पहले इस पिको उपग्रह ने सभी टेस्ट सफलतापूर्वक पास कर लिए थे। यह पिको सैटेलाइट एक बाई डायरेक्शनल कम्यूनिकेशन प्लेटफॉर्म पर बनाया गया है और अंतरिक्ष में 500-800 किमी की ऊंचाई से पृथ्वी के चक्कर लगाएगा। इस प्रोजेक्ट को 40 छात्रों की टीम ने 2008 में बनाना शुरू किया था। पुणे के विद्यार्थियों ने एक सस्ता व हल्का उपग्रह तैयार कर एक अलग ही कीर्तिमान स्थापित कर दिया है ।
इसका सफल प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा से किया गया | पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों द्वारा तैयार किया गया ‘स्वयं’ उपग्रह हैम रेडियो कम्यूनिटी को संदेश भेजने का कार्य करेगा, जिससे सुदूर क्षेत्रों में भी पॉइंट-टू-पॉइंट कम्युनिकेशन हो सकता है | पीएसएलवी द्वारा ‘स्वयं’ को 515.3 किलोमीटर की ऊंचाई पर इसकी कक्षा में छोड़ा गया |
इस पर 2008 से काम हो रहा था और इसके निर्माण में तकरीबन 50 लाख का खर्च आया है। इसी के साथ यह मैग्नेटिक फिल्ड के डायरेक्शन के अनुसार ऑटोमैटिक खुद को व्यवस्थित कर लेता है, इसलिए इसे 'स्वयं' नाम दिया गया है। इसे चेन्नई की सत्यभामा यूनिवर्सिटी के 1.5 किलो वजनी 'सत्यभामासैट' के साथ लॉन्च किया गया।
यह एक यूनिक टेक्नोलॉजी है और इसे देश में पहली बार इस्तेमाल में लाया गया है। "स्वयं सैटेलाइट" के सफल हो जाने के बाद रिमोट एरियाज में एंड-टू- एंड कम्युनिकेशन स्थापित करना आसान हो गया । लॉन्च के बाद पृथ्वी की मैग्नेटिक फिल्ड के हिसाब से इसने अपने आपको सही जगह स्थापित भी कर लिया।
इसकी खास विशेषता यह है कि इसमें एक ऐसा पैसिव सिस्टम लगा हुआ है, जिसके कारण इसे स्टेबलाइज होने यानी संयत होने के लिए तथा पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की ओर मुड़ने के लिए किसी विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता भी नहीं होती है | दरअसल, इसमें अपने आप को स्टेबलाइज करने के लिए दो हिस्टेरेसिस रॉड तथा एक चुंबक लगी हैं | विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई इस विशेष युक्ति को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भी सराहा है |
दरअसल, ‘स्वयं’ का पैसिव एटिट्यूड कंट्रोल सिस्टम भारत में पहली बार इस्तेमाल किया गया है | इस उपग्रह का डिजाइन इस तरह किया गया है कि इसका जीवन काल एक वर्ष का होगा, जिसे जरूरत पड़ने पर दो वर्षो तक बढ़ाया भी जा सकता है । विद्यार्थियों द्वारा तैयार किए गए इस स्वदेशी उपग्रह की सफलता के बाद लगने लगा है कि अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए विद्यार्थियों की अहम भूमिका हो सकती है |
पीएसएलवी-सी34 द्वारा प्रक्षेपित किए गए अमेरिका-निर्मिंत 13 छोटे उपग्रहों में गूगल की एक कंपनी टेरा बेला द्वारा बनाया गया पृथ्वी की तस्वीरें खींचने वाला हाई-टेक उपग्रह स्काईसैट जेन-2 भी शामिल है| 110 किलोग्राम वजन वाला यह स्काईसैट जेन-2 सब-मीटर रिसॉल्यूशन की तस्वीरें खींचने तथा हाई-डेफिनिशन वीडियो बनाने में सक्षम है | एक ही बार में प्रक्षेपित किए गए 20 उपग्रहों में से प्रत्येक एक-दूसरे से बिल्कुल अलग और स्वतंत्र है ।
इसी कॉलेज के डायरेक्टर बीबी आहूजा के मुताबिक, उनके कॉलेज द्वारा बनाया गया "स्वयं सैटेलाइट" के सफल हो जाने के बाद इसरो ने उनकी दूसरी सैटेलाइट बनाने के कॉलेज के प्रोजेक्ट को भी अप्रूव कर दिया है।
ये भारत के लिए अत्यंत ही गर्व का विषय है, क्योकि भारत में पहली बार कोई ऐसा सैटेलाइट लांच हुआ है, जिसे वैज्ञानिकों की टीम ने बल्कि एक कॉलेज में पड़ने वाले स्टूडेंट्स की टीम ने तैयार किया । इसीलिए भारत का रहवासी इसे स्टूडेंट सैटेलाइट के नाम से पुकार रहा है ।
ये भारत के लिए एक गौरवशाली पल है । जिसे सुनकर हर भारतवासी का दिल गर्व से चौड़ा हो जाता है । ये वही मिटटी है, जहां बच्चे से लेकर बड़ो में हमेशा कुछ करने का जूनून और जज्बा रहता है । इस बात को प्रमाणित करने के लिए "स्वयं सैटेलाइट" का सफल प्रशिक्षण, इससे बड़ा कोई उदाहरण नहीं हो सकता । ऐतिहासिक उपलब्धियों से यह बात तो स्पष्ट है कि भारतीय वैज्ञानिकों की क्षमता और प्रतिभा विश्व के किसी भी देश के वैज्ञानिकों से कम नहीं है | यही नहीं, जब भारतीय विद्यार्थी भी ‘सत्यभामासैट’ और ‘स्वयं’ जैसे हल्के एवं सस्ते उपग्रह तैयार कर सकते हैं, तो यदि उन्हें उचित साधन, सुविधाएं और मार्गदर्शन दिया जाए तो ये नन्हें वैज्ञानिक भी दुनिया में भारत का नाम रौशन करेंगे |